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या ते॑ हे॒तिर्मी॑ढुष्टम॒ हस्ते॑ ब॒भूव॑ ते॒ धनुः॑। तया॒स्मान् वि॒श्वत॒स्त्वम॑य॒क्ष्मया॒ परि॑ भुज ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या। ते॒। हे॒तिः। मी॒ढु॒ष्ट॒म॒। मी॒ढु॒स्त॒मेति॑ मीढुःऽतम। हस्ते॑। ब॒भूव॑। ते॒। धनुः॑। तया॑। अ॒स्मान्। वि॒श्वतः॑। त्वम्। अ॒य॒क्ष्मया॑। परि॑। भु॒ज॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनापति आदि किन से कैसे उपदेश करने योग्य हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मीढुष्टम) अत्यन्त वीर्य के सेचक सेनापते ! (या) जो (ते) तेरी सेना है और जो (ते) तेरे (हस्ते) हाथ में (धनुः) धनुष् तथा (हेतिः) वज्र (बभूव) हो (तया) उस (अयक्ष्मया) पराजय आदि की पीड़ा निवृत्त करने हारी सेना से और उस धनुष् आदि से (अस्मान्) हम प्रजा और सेना के पुरुषों की (त्वम्) तू (विश्वतः) सब ओर से (परि) अच्छे प्रकार (भुज) पालना कर ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - विद्या और अवस्था में वृद्ध उपदेशक विद्वानों को चाहिये कि सेनापति आदि को ऐसा उपदेश करें कि आप लोगों के अधिकार में जितना सेना आदि बल है, उससे सब श्रेष्ठों की सब प्रकार रक्षा किया करें और दुष्टों को ताड़ना दिया करें ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनाधीशादयः कैः कथमुपदेश्या इत्युच्यते ॥

अन्वय:

(या) सेना (ते) तव (हेतिः) वज्रः। हेतिरिति वज्रनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.२०) (मीढुष्टम) अतिशयेन वीर्यस्य सेचक सेनापते ! (हस्ते) (बभूव) भवेत् (ते) (धनुः) (तया) (अस्मान्) (विश्वतः) सर्वतः (त्वम्) (अयक्ष्मया) पराजयादिपीडानिवारिकया (परि) समन्तात् (भुज) पालय ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मीढुष्टम सेनापते ! या ते सेनाऽस्ति। यच्च ते हस्ते धनुर्हेतिश्च बभूव। तयाऽयक्ष्मया सेनया तेन चास्मान् प्रजासेनाजनान् त्वं विश्वतः परि भुज ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - विद्यावयोवृद्धैरुपदेशकैर्विद्वद्भिः सेनापत्यादय एवमुपदेष्टव्या भवन्तो यावद् बलं तावता सर्वे श्रेष्ठा सर्वथा रक्षणीया दुष्टाश्च ताडनीया इति ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वयोवृद्ध व विद्यायुक्त उपदेशकांनी सेनापतींना असा उपदेश करावा की तुमच्या सैन्यशक्तीने श्रेष्ठ माणसांचे रक्षण करावे व दुष्टांना मारावे.